Breaking News






- पहली बार ब्‍लॉगिंग शुरू करने विचार आपके मन में कैसे आया?

हिन्दी में मैं कोई बीस बाईस वर्षों से लिख रहा हूँ. अपनी कुछ रचनाओं को मैंने इंटरनेट पर याहू के जियोसिटीस.कॉम पर पीडीएफ़ प्रारूप में प्रकाशित किया था. उसे इंदौर के देबाशीष ने सन् 2004 में देखा और मुझे बताया कि ब्लॉग के जरिए बेहतर तरीके से रचनाओं को प्रकाशित किया जा सकता है. मैंने देखा तो पाया कि किसी रचनाकार के लिये अपनी रचनाओं को इंटरनेट के जरिए बस्तर से लेकर न्यूयॉर्क तक चहुँओर, सहज, तरीके से पहुँचाने का इससे सुंदर, सरल और सस्ता उपाय नहीं हो सकता.

- हिंदी ब्‍लॉगिंग में किस तरह की सामग्री आ रही है?

हिंदी ब्लॉगिंग अभी अपनी शैशवावस्था के दौर से गुजर रहा है. इसे मैच्योर होने में कुछ समय तो निश्चित तौर पर लगेगा. सामग्री हर तरह की आने लगी है. फिर भी साहित्य, और खासकर कविताओं की भरमार है. मगर एकदम बकवास और बेकार सामग्री भी नहीं है कि लोग अपने ब्लॉगों में - जिसके लिए वे स्वतंत्र हैं लिख रहे हों कि उन्होंने आज सुबह नाश्ते में क्या खाया, या फिर, शीघ्र चर्चित और प्रसिद्ध होने के लिए जैसा कि अंग्रेज़ी मीडिया में कई उदाहरण हैं वयस्क सामग्री परोस रहे हों. फिर भी, अभी तो शुरूआत हुई है. हिन्दी को अपने दिन इंटरनेट पर देखने हैं और भविष्य में हर किस्म की, हर विषय की, स्तरीय सामग्री की प्रचुरता रहेगी.

- ब्‍लॉगिंग में आपकी आगामी योजना क्‍या है?

वैसे तो ब्लॉगिंग मेरे लिए अपनी सर्जनात्मकता को दुनिया के समक्ष बिना किसी लाग-लपेट या कांट-छांट के रखने का एक सर्वोत्तम माध्यम ही रहा है. परंतु ब्लॉगिंग प्लेटफ़ॉर्म की संरचना कुछ इस तरह की है कि इसका इस्तेमाल असीमित तरीकों से हो सकता है. हमारे भारत के ही अमित अग्रवाल का उदाहरण अकसर दिया जाता है उन्होंने अपनी जमी जमाई अच्छी खासी नौकरी पूर्णकालिक-ब्लॉगिंग के लिए छोड़ दी और वे अपने ब्लॉग के जरिए आशा से अधिक आय अर्जित करते हैं. वे अंग्रेजी में ब्लॉग लिखते हैं, और हिन्दी में इस तरह की व्यवसायिक सफलता की कामना दिवास्वप्न भले ही न हो, दूर-स्वप्न तो है ही. मैं यह स्वप्न देखने की घृष्टताई कर रहा हूँ. मैंने पिछले वर्ष व्यवसायिक चिट्ठाकारी में कदम रखा था और जो लक्ष्य मैंने निर्धारित किए थे, उन्हें पाने में मैं सफल रहा हूँ.

दूसरे शब्दों में, ब्लॉगिंग (http://raviratlami.blogspot.com/ ) के जरिए मैं अपनी सरसों का साग और मक्की की रोटी का खर्च निकालना चाहता हूँ. मेरी भविष्य की योजना में रचनाकार प्रकल्प (http://rachanakar.blogspot.com/ ) के रूप में ये भी शामिल है कि वो हिन्दी साहित्य के लिये प्रोजेक्ट गुटेनबर्ग की राह पर चलने की अदना सी कोशिश तो करे.