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बाल कहानी - अहंकार का फल - सार्थक देवांगन

अहंकार का फल

                                      एक गांव में एक पहलवान था। उसे भ्रम था कि वह अपने गांव में सबसे ज्यादा ताकतवर है। उसका नाम बल्ली था। उसके पास कुछ कमी नहीं थी। उसकी एक बुरी आदत थी , वह कमजोरों को परेशान करता था। एक दिन एक आदमी बाजार से फल लेकर आ रहा था। बल्ली पहलवान को फल खाने का मन किया उसने फल छीन लिया।

                                        उसी गांव मे एक दूसरा पहलवान था जिसका नाम रघु था।  लेकिन वह कभी किसी को तंग नहीं करता था और किसी को बताता तक नहीं था कि वह पहलवान है। वह कभी घमंड नहीं करता था। लेकिन उसकी एक परेशानी थी कि वह डरपोक था। रघु को लगता था कि वह अगर बता देगा कि वह पहलवान है तो , कहीं बल्ली गुस्से मे उसे मार ना दे। बल्ली बहुत गुस्से वाला इंसान था और घमंडी भी बहुत था। बल्ली ने एक दिन रघु को पकड़ लिया और उसके हाथो के सामान को छीनकर रघु को झापड़ मार दिया……….। उस समय तक उसे पता नहीं था कि रघु भी पहलवान है। रघु ने भी उसे बहुत जोर से मार दिया। बल्ली को गुस्सा आया और कहने लगा - मुझे मारने की हिम्म्त कैसे हुई ? आज तक कोई भी व्यक्ति मेरी ओर सिर उठाकर बात तक नहीं करता है और तुमने मार दिया। अब तू नहीं बचेगा। उस दिन रघु ने पहली बार सच्चाई बताई कि वह भी एक पहलवान है। बल्ली ने कुश्ती की चुनौती दे दी। रघू ने बल्ली के कहा - इतना अभिमान ठीक नहीं है। बल्ली अपने बल के अभिमान में पागल था। बल्ली ने मुकाबले का एलान कर दिया और पूरे गांव में ढिंढोरा पिटवा दिया।

                   मुकाबले का दिन आ गया। उन दोनों को बेसब्री से इंतजार था। गांव के लोगों ने पहली बार जाना कि रघु भी पहलवान है। मुकाबला शुरु हो गया। बल्ली के आतंक से त्रस्त गांव का कोई भी आदमी उसकी ओर नहीं था। पूरे गांव का सपोर्ट रघु को था। परंतु हमेशा अभ्यास नहीं कर पाने की वजह से , रघु कुश्ती के बहुत सारे दांव पेंच नहीं जानता था। वह लगातार मार खाता रहा। मगर ताकत में वह बल्ली से कम नहीं था। गांव वालों के असहयोग के कारण बल्ली को गुस्सा आ रहा था। इसी गुस्से में वह बेकाबू हो गया जिसका फायदा उठाकर रघु ने बल्ली को ऐसा घूंसा मारा कि वह उठ नहीं पाया। उसकी छाती पर सवार हो गया। बल्ली ने पूरा जोर लगाया परंतु उसका ध्यान कुश्ती से अधिक , गांव के उन लोगों की ओर था जो उसके खिलाफ दिख रहे थे। इस चक्कर मे वह दांव पेंच भूल गया। वह चाहकर भी उठ नहीं पाया। वहीं निढाल हो गया। रघु जीत गया। बल्ली का अभिमान टूट गया।

                                                         सार्थक देवांगन