Re: गीत
आदरणीय महोदय / महोदया,
आपकी रचना आज के अंक में प्रकाशित हो चुकी है ।कृपया देखें।
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https://www.rachanakar.org/2019/09/blog-post_9.html?m=1
रचनाकार में प्रकाशनार्थ रचनाएँ भेजने संबंधी अधिक जानकारी के लिए यह लिंक - http://www.rachanakar.org/2005/09/blog-post_28.html देखें।
सहयोग के लिए हार्दिक धन्यवाद।
सादर
रवि रतलामी
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सादर
रवि रतलामी
On Mon, Sep 9, 2019, 11:40 AM Ravishankar Shrivastava <raviratlami@gmail.com> wrote:
---------- Forwarded message ---------
From: रामानुज श्रीवास्तव <ramanuj.shrivastava370@gmail.com>
Date: Mon, Sep 9, 2019, 9:20 AM
Subject: गीत
To: Ravishankar Shrivastava <rachanakar@gmail.com>परिचय..........वास्तविक नाम..रामानुज श्रीवास्तवपिता.......श्री रामदुलारे लालजन्मतिथि 25 जुलाई 1958जन्म स्थान. गाँव. धोवखरा, जिला रीवा मध्यप्रदेशशिक्षा..विज्ञान स्नातकरुचियाँ...साहित्य, दर्शन और भारतीय शास्त्रीय संगीतलेखन..कविताएं, गजल, गीत, नवगीत, दोहा, मुक्तक, कहानी, लघुकथा उपन्यास, व्यंग्य, समालोचना, समीक्षा आदि।रचना संसार........................................1...सलिला (गीत, नवगीत)2...रोटी सेंकता सूरज(गीत, नवगीत)3...मैं बोलूँगा (गजल)4...अभी सुबह नहीं (गजल)5...अनकहा सच (गजल)6...दस्तार (गजल)7...अभी ठहरा नहीँ हूँ (गजल)8.. हज़ल के बहाने (हज़ल)9...और हजल बन गई(हज़ल)10.बस एक हज़ल चाहिए(हज़ल)11.माटी के बोल (बघेली रचनाएँ)12.चल साजन घर आपने (दोहे)13.जिंदगी गजल बन गई (रामानुज अनुज की चुनिंदा गजलें)14. जूजू (उपन्यास)15.राग देहाती (व्यंग्य)16.लेलगाड़ी (कथा संग्रह)17.करती है सम्वाद हवा (गजल)18.तीसरी आंख (गजल)19.बनी रात की प्रहरी शाम (गजल)20.बोल उठी सिन्दूरी शाम (गीत, नवगीत)21.लामट बेटा (कथा संग्रह)22.मैं मौली भाग 1 (उपन्यास)23.मैं मौली भाग 2 (उपन्यास)25.मैं मौली भाग 3 (उपन्यास)26.डरे हुए लोग (उपन्यास)27.चल जोगी आकाश देख लें (ग़ज़ल)28. कैसी चाहत (इश्क की अनकही दास्ताँ) उपन्यास29.हलो!! मैं किस्सा बोल रहा हूँ (कहानियाँ)30.मंगला(उपन्यास)31.जोर लगइके हइसा (व्यंग्य)सम्पर्क.. 43/436 हनुमाननगर रीवापिन..486005मोबा. 09098208132जीमेल... ramanuj.shrivastava370@gmail.com-----------------------------------------------------------------------------------गीत 01खग रे!! ऐसी तान सुना।हो दिवस मधुर हो रात मधुर,हो नित्य जागरण शयन मधुर,हो जाए ह्रदय का मधुर मिलन,हो प्रीति सरस रस सहस गुना।खग रे!! ऐसी तान सुना।खिल उठें बाग़ अधखिले सुमन,दिशि महक उठे क्षिति नील गगनहो उदय नित्य रवि अरुण अयन,कट जाए तिमिर का बंध बुना।खग रे!! ऐसी तान सुना।रंग रंग नव पंख खोल कर,अंग-अंग रुचि वसन ओढ़कर,सहज-सरस सुर ताल बोलकर,नाच सुहृद तक-धिना-धिना।खग रे!! ऐसी तान सुना।दे जला ज्योति हो मन प्रकाश,दे नित्य मिलन का मधुर आस,हो खिली कमलनी नारि सदृश,हो प्रकृति पुरुष सा कमल जना।खग रे!! ऐसी तान सुना।दिवा-निशा नित सांध्य मिले,सुचि सुरभि सुशोभित सुमन खिले,अधरों में मधुरिम हास बसे,हो ह्रदय-मध्य सम्बंध घना।खग रे!! ऐसी तान सुना।............................................गीत02पेट पकड़े रो रहे हैं कौन सी तकलीफ में।क्या हुआ केशव! बताओ आज जम्बू-दीप में।देवता रहते नहीँ हैं,पार्थ! अब उस लोक में।लोग अच्छे मर रहे हैं,दूसरों के शोक में।लोक का व्यवहार अर्जुन!धर्म पथ से च्युत हुआ है।प्यार की चालाकियों से,ह्रदय कोमल मृत हुआ है।युद्ध फिर होने लगे हैं बीच मोती सीप में।क्या हुआ केशव बताओ....युद्ध को तैयार हैं सब,झूठ के अनुदेश में।सत्य के सत्कर्म सारे,हैं सखे अब क्लेश में।तेल किंचित ही बचा है सत्य रूपी दीप में।क्या हुआ केशव बताओ...हो रहे पाखण्ड से नित,धर्म लोपित हो रहा।बीच जहरीले धरा में,नित्य मानव बो रहा।हर कोई ऐठा हुआ है जहर रखकर जीभ में।क्या हुआ केशव बताओ...*****गीत03गीत सुनाते कैसे साथी,वाणी में श्रृंगार नहीं।बजती कैसे सुर की वीणा,तारो में झंकार नहीं।भाव मनोहर देह तापकर,सुलग-सुलग अंगार हुये।जाने किसकी नजर लग गई,गीत छुरी तलवार हुये।अधर सूखते कैसे गाते,गीतों में रस धार नहीँ।बजती कैसे सुर की वीणा........विषपायी हरजाई रातें,यौवन की मदिरा पी डाली।सुधियों की देहरी में बैठी,क्या करती मैं भोली-भाली।उमड़ घुमड़ होते नित बादल,गाते मेघ मल्हार नहीँ।बजती कैसे सुर की वीणा......*****गीत04फिर गुलाब अधखिले रह गए,देह अभी तो गंध हुई थी।स्पर्शों के साथ खेलकर,पंखुड़ियाँ सम्बन्ध हुई थीं।असुआये से वारिद जल से,कैसे ये अनुबंध हुए हैं।करना था जिनको आलिंगन,वही दूर से छाँव छुए हैं।कहने को जब मन मे आया,सम्बोधन सब टले रह गए।फिर गुलाब.......मिलने की सारी सीमाएं,वस्त्र उतारे घूम रहीं हैं।धोखे से परछाईं को ही,गले लगाए चूम रही हैं।मर्यादा की ओढ़े चादर,सच्चे प्रेमी छले रह गए।फिर गुलाब.....आती रहीं बहारें मिलने,निशि-दिन प्राची से चलकर।उनके स्वागत में धाये थे,निदियारी पलकों को मलकर।मिलन हुआ न उनसे अब तक,पाँव चले के चले रह गए।फिर गुलाब....*****गीत05आज जी भर उसे देख ले प्यार से,कल परिंदा बहुत दूर उड़ जाएगा।खोल कर बात की, गांठ हँस बोल ले,प्यार के नीर में प्यार रंग घोल ले।नैन की पालकी में झूला दे उसे,गेसुओं को ओढ़ाकर सुला दे उसे।स्वप्न बन आ उतर, साज-सृंगार कर,नाम उसके, तुम्हारा भी जुड़ जाएगा।कल परिंदा बहुत दूर.............जब तलक साथ में ये तुम्हारे रहा,नींद में भी नयन को उघारे रहा।दर्द की बाँसुरी जब सुनी कान में,धड़कनों को जतन से सँवारे रहा।अब बिदा दे, उसे भाल कुंकुम लगा,कल परिंदा नयी राह मुड़ जाएगा।कल परिंदा बहुत दूर .....रामानुज अनुज